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फोन कॉल और डिजिटल ठगी: वर्धमान ग्रुप के बॉस एसपी ओसवाल ने कैसे गंवाए 7 करोड़?

टेक्सटाइल कंपनी वर्धमान ग्रुप के प्रमुख एसपी ओसवाल के साथ हुई धोखाधड़ी ने साइबर अपराधियों के तरीके और उनकी पहुंच को लेकर कई नए सवाल खड़े कर दिए हैं। इस रिपोर्ट में जानें कि कैसे अपराधियों ने उन्हें जाल में फंसाया, उन्हें 2 दिन तक डिजिटल गिरफ्त में रखा, और 7 करोड़ रुपये का ट्रांसफर करवा लिया। इन अपराधियों की योजना किसी फिल्म की कहानी से कम नहीं है।

How Vardhman Boss Was Duped: वर्धमान ग्रुप के प्रमुख एसपी ओसवाल के साथ हुई धोखाधड़ी की घटना ने पूरे देश में हलचल मचा दी है। इस मामले में एक शख्स ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ होने का दावा किया, साथ ही एक नकली वर्चुअल कोर्टरूम और असली लगने वाले फर्जी दस्तावेज़ों का सहारा लिया। इसी शातिर योजना के तहत एसपी ओसवाल को फंसाया गया और उनसे 7 करोड़ रुपये का ठगी की गई।

वर्धमान ग्रुप के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर एसपी ओसवाल को 28 और 29 अगस्त को डिजिटल गिरफ्त में रखा गया, जिसके दौरान उनसे कई खातों में कुल 7 करोड़ रुपये ट्रांसफर कराए गए। पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए इनमें से कई खातों को फ्रीज कर दिया है, और अब तक 5 करोड़ रुपये से अधिक की राशि रिकवर की जा चुकी है। इस रिपोर्ट में जानिए 82 साल के एसपी ओसवाल को फंसाने की पूरी कहानी और धोखेबाजों की योजना का विस्तृत विवरण।

जब आई पहली फोन कॉल: एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, एसपी ओसवाल ने बताया कि 28 सितंबर (शनिवार) को उन्हें एक फोन कॉल आई। कॉल में उन्हें बताया गया कि अगर वे 9 नंबर दबाने में विफल रहते हैं, तो उनका फोन डिस्कनेक्ट हो जाएगा। जब उन्होंने 9 नंबर दबाया, तो उन्हें बताया गया कि यह कॉल सीबीआई के कोलाबा ऑफिस से की गई है। कॉल करने वाले व्यक्ति ने ओसवाल को एक फोन नंबर दिया और कहा कि यह नंबर किसी अन्य व्यक्ति ने उनके नाम पर लिया है और उसका दुरुपयोग कर रहा है।

ओसवाल को केनरा बैंक में एक खाते की जानकारी दी गई: उन्हें बताया गया कि उनके नाम पर एक केनरा बैंक में खाता है। जब उन्होंने कहा कि ऐसा कोई खाता नहीं है, तो कथित सीबीआई अधिकारी ने दावा किया कि यह खाता उनके नाम पर ही है और इसमें कुछ वित्तीय अनियमितताएं पाई गई हैं।

नरेश गोयल से संबंध का दावा: ओसवाल ने बताया कि इसके बाद उन लोगों ने उन्हें एक वीडियो कॉल पर जोड़ दिया। उन्होंने यह भी कहा कि जिन वित्तीय अनियमितताओं के लिए उनके नाम के खाते का इस्तेमाल किया गया, वे नरेश गोयल के खिलाफ चल रहे मामले से जुड़ी हैं। ज्ञात रहे कि नरेश गोयल, जेट एयरवेज के पूर्व चेयरमैन हैं, जिन्हें पिछले साल मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था।

ATM से पैसे निकालते वक्त न करें ये गलती, हो रहा है बड़ा स्कैम: ओसवाल ने कहा कि उन लोगों ने उन्हें बताया कि वह भी इस मामले में संदिग्ध हैं। इस पर ओसवाल ने स्पष्ट किया कि न तो वह खाता उनका है और न ही वह नरेश गोयल को जानते हैं। इसके जवाब में धोखेबाजों ने कहा कि यह खाता उनकी आधार डिटेल्स का उपयोग करके खोला गया है। ओसवाल ने स्वीकार किया कि उन्होंने जेट एयरवेज के माध्यम से यात्रा की थी, इसलिए संभव है कि उन्होंने अपनी जानकारी एयरलाइन के साथ साझा की हो।

फोन करने वालों ने ओसवाल को बताया कि जब तक मामले की जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक वह भी एक संदिग्ध के रूप में रहेंगे और उन्हें डिजिटल हिरासत में रहना होगा। धोखेबाजों ने ओसवाल से कहा कि वह उनकी मदद करेंगे, लेकिन इसके लिए उन्हें पूरा सहयोग करना होगा। वीडियो कॉल के दौरान एक व्यक्ति ने अपना नाम राहुल गुप्ता बताकर खुद को चीफ इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर बताया और ओसवाल को सर्विलांस के नियम भेजे। इन नियमों की संख्या लगभग 70 थी। उन्होंने ओसवाल से एक पत्र लिखने को कहा, जिसमें प्रायोरिटी इन्वेस्टिगेशन का अनुरोध करना था।

कानून का डर दिखाया: डरे हुए ओसवाल ने उनके कहे अनुसार किया। इन लोगों ने ओसवाल का बयान दर्ज किया और उनसे उनके बचपन, शिक्षा और व्यवसाय के बारे में सवाल किए। ओसवाल ने बताया कि उन्हें सबकुछ याद नहीं है, लेकिन मैनेजर से बात करने के बाद वह जानकारी दे सकते हैं। लेकिन, अपराधियों ने कहा कि यह मामला नेशनल सीक्रेट्स एक्ट के तहत है, इसलिए वह इस बारे में किसी से बात नहीं कर सकते। उन्होंने यह भी बताया कि अगर ऐसा किया, तो उन्हें 3 से 5 साल की जेल की सजा हो सकती है।

फर्जी कोर्ट, फर्जी सीजेआई: ओसवाल ने बताया कि जांच अधिकारी के रूप में पेश होने वाले लोग सिविल ड्रेस में थे और उनके पास आईडी कार्ड थे। पीछे एक कार्यालय जैसा सेटअप था जिसमें भारतीय ध्वज था। वीडियो कॉल के दौरान उन्हें एक फर्जी कोर्टरूम भी दिखाया गया। यहां तक कि एक शख्स ने खुद को देश के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ बताकर मामले की सुनवाई की और आदेश पारित किया। यह आदेश ओसवाल को व्हाट्सएप के माध्यम से भेजा गया।

इस आदेश के आधार पर ओसवाल से विभिन्न बैंक खातों में 7 करोड़ रुपये ट्रांसफर करने को कहा गया। उन्हें एक फर्जी अरेस्ट वॉरंट भी दिखाया गया, जिस पर प्रवर्तन निदेशालय का मोनोग्राम और मुंबई पुलिस की स्टांप थी। जानकारी के अनुसार, ईडी द्वारा जारी असली अरेस्ट वॉरंट पर मुंबई पुलिस की स्टांप नहीं होती है। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के रूप में भेजे गए दस्तावेज पर तीन रेवेन्यू स्टांप, शीर्ष अदालत की मुहर और बार एसोसिएशन की मुहर भी थी। इस पर एक बार कोड और डिजिटल सिग्नेचर भी थे, जो असली सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भी होते हैं।

अब तक क्या एक्शन हुआ? इस मामले में पुलिस ने एसपी ओसवाल की शिकायत पर 31 अगस्त को केस दर्ज किया। साइबर क्राइम यूनिट की मदद से जिन खातों में ओसवाल से पैसे ट्रांसफर किए गए थे, उनमें से 3 को फ्रीज कर दिया गया है। ओसवाल को अब तक करीब 5.25 करोड़ रुपये वापस मिल चुके हैं। पुलिस के अनुसार, इस प्रकार के मामलों में यह देश की सबसे बड़ी रिकवरी है।

पुलिस को पता चला है कि इस मामले के पीछे एक अंतर-राज्य गैंग का हाथ है। इस केस में असम के गुवाहाटी से अतनु चौधरी और आनंद कुमार नामक दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है। आनंद ने पुलिस को बताया कि उसे पैसे की आवश्यकता थी। मामले की मास्टरमाइंड पूर्व बैंक कर्मचारी रूमी कालिता को बताया जा रहा है। अन्य आरोपियों में निम्मी भट्टाचार्य, आलोक गरांगी, गुलाम मुर्तजा और जाकिर शामिल हैं, जिनकी तलाश की जा रही है।

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