नायडू का लड्डू, नीतीश का मंदिर! बैसाखियों की राजनीति से चिंतित बीजेपी, ‘प्रसाद’ की सियासत ने बढ़ाई धड़कनें
Tirupati Laddu Controversy: चंद्रबाबू नायडू ने तिरुपति मंदिर के लड्डू प्रसाद की शुद्धता पर सवाल उठाकर एक ही तीर से तीन निशाने साधे हैं – जगन रेड्डी, पवन कल्याण, और बीजेपी। नायडू की यह चाल इतनी प्रभावशाली साबित हुई है कि इससे जगन रेड्डी राजनीतिक रूप से बैकफुट पर आ गए हैं।
Tirupati Laddu Controversy: एनडीए के दो प्रमुख नेताओं, चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के हालिया कदमों ने बीजेपी की चुनौतियाँ बढ़ा दी हैं। आंध्र प्रदेश की राजनीति में हंगामा मचाने वाला मुद्दा तब खड़ा हुआ जब तिरुपति मंदिर में जगन रेड्डी सरकार के कार्यकाल के दौरान भगवान वेंकटेश्वर के लड्डू प्रसाद में कथित रूप से एनिमल फैट का इस्तेमाल होने का आरोप लगा। वहीं, नीतीश कुमार ने अयोध्या से सीतामढ़ी तक ट्रेन चलाने की मांग कर बीजेपी को चौंका दिया है। साथ ही, उन्होंने राम मंदिर के निर्माण की तारीफ कर और सीतामढ़ी स्थित पुनौरा धाम के विकास में अपने योगदान को रेखांकित कर सियासी पारा और बढ़ा दिया है।
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि केंद्र की सत्ता, नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के समर्थन पर काफी हद तक निर्भर करती है। हालांकि, इन दोनों नेताओं के हालिया कदमों से ऐसा प्रतीत होता है कि वे बीजेपी के करीब आ रहे हैं, असल में यह अपने-अपने राज्यों में हिंदू वोट बैंक को साधने की एक रणनीति है ताकि बीजेपी उनके वोट बैंक में सेंध न लगा पाए।
नायडू ने तिरुपति लड्डू का मुद्दा उठाकर जगन रेड्डी को सीधे निशाने पर लिया है। खासकर यह आरोप लगाकर कि जगन, जो एक ईसाई हैं, तिरुपति मंदिर में बिना हलफनामा दिए प्रवेश कर रहे हैं। इस मुद्दे से नायडू को अपने हिंदू वोट बैंक को बनाए रखने में मदद मिलेगी।
जगन रेड्डी की मुश्किलें तब और बढ़ गईं जब नायडू ने उन्हें हलफनामे के मुद्दे पर भी कटघरे में खड़ा किया। वहीं, पवन कल्याण की जनसेना पार्टी को भी इस धार्मिक विवाद से प्रभावित होते देखा गया है। पवन कल्याण ने सनातन धर्म रक्षण बोर्ड बनाने की मांग कर यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि मंदिरों से जुड़े मामलों का हल बोर्ड द्वारा ही किया जाए।
2020 में पवन कल्याण और बीजेपी ने “धर्म रक्षण दीक्षा” नाम से एक संयुक्त उपवास कार्यक्रम की शुरुआत की थी, जो आंध्र प्रदेश में मंदिरों पर कथित हमलों के बाद शुरू किया गया था। हालांकि, टीडीपी नेता भी पवन कल्याण पर नजर बनाए हुए हैं, जो एनटीआर के नक्शेकदम पर चलते हुए भगवा धारण कर और गले में पटका लगाते हुए नजर आ रहे हैं।
पवन कल्याण और बीजेपी के संबंधों को इस प्रकार समझा जा सकता है कि 2024 लोकसभा चुनावों के बाद आंध्र प्रदेश में एनडीए की बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “पवन नहीं, यह आंधी है।” बीजेपी के नेताओं का भी मानना है कि पवन कल्याण का पार्टी समर्थकों के बीच गहरा प्रभाव है और वह बीजेपी नेतृत्व के विश्वासपात्र भी हैं।
बिहार में नीतीश की रणनीतिक चाल नीतीश कुमार ने राम मंदिर निर्माण के लिए पहली बार सार्वजनिक रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की है। साथ ही, उन्होंने सीतामढ़ी में अपनी सरकार द्वारा किए गए कार्यों को भी उजागर किया। नीतीश ने पीएम मोदी से अयोध्या और सीतामढ़ी के बीच एक सीधी ट्रेन सेवा शुरू करने की मांग की है। नीतीश के इस राम-सीता प्रेम ने बिहार बीजेपी को असहज कर दिया है।
बीजेपी का मानना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू के नेता शानदार प्रदर्शन कर बीजेपी के वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं। नीतीश कुमार की अयोध्या पर की गई टिप्पणी इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिछले आठ महीनों में उन्होंने इस विषय पर कभी खुलकर बात नहीं की, बल्कि चुप्पी साधे रखी। अब, आठ महीने बाद, जब नीतीश राम मंदिर निर्माण की प्रशंसा कर रहे हैं, तो यह स्पष्ट है कि बीजेपी के लिए यह एक चौंकाने वाली स्थिति है।
माता सीता और महिला वोट
नीतीश कुमार की राजनीति में माता सीता का स्थान अलग है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह बीजेपी की नीतियों का अनुसरण कर रहे हैं, लेकिन बिहार में माता सीता को आगे रखकर रामायण सर्किट और पर्यटन को बढ़ावा देकर नीतीश ने अपने वोट बैंक को सहेजा है। माता सीता को स्त्री सशक्तिकरण का प्रतीक माना जाता है, और इसीलिए बिहार में महिलाओं के बीच नीतीश कुमार की लोकप्रियता बढ़ी है।
शराबबंदी का फैसला नीतीश कुमार ने बिहार में महिलाओं के लंबे समय तक चले आंदोलन के परिणामस्वरूप लिया है। जबकि शराबबंदी की सफलता या असफलता पर चर्चा होती है, नीतीश ने कभी भी अपने फैसले पर संदेह नहीं जताया। लगातार चुनावों में जेडीयू की सफलता इस बात का प्रमाण है।