दिल्ली उच्च न्यायालय ने यौन उत्पीड़न के आरोपों पर यूनियन बैंक के कार्यकारी निदेशक की नियुक्ति के खिलाफ याचिका पर नोटिस जारी किया
दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को एक महिला द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर पंकज द्विवेदी की यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक के रूप में नियुक्ति के खिलाफ एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर नोटिस जारी किया।
द्विवेदी को 27 मार्च को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का कार्यकारी निदेशक नियुक्त किया गया। यह नियुक्ति तीन वर्ष के कार्यकाल के लिए की गई है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने महिला की याचिका पर नोटिस जारी किया।
महिला की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि नियुक्ति नियमों के खिलाफ है क्योंकि कोई सतर्कता मंजूरी नहीं ली गई। उन्होंने कहा कि यह बैंकों जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की नियुक्ति के नियमों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि महिला द्वारा यौन उत्पीड़न मामले में द्विवेदी के खिलाफ आरोप पत्र भी दायर किया गया था। सुनवाई के दौरान पीठ ने द्विवेदी की नियुक्ति पर सवाल उठाया और टिप्पणी की कि सतर्कता मंजूरी के बिना ऐसा नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने केंद्र सरकार के वकील से पूछा कि अगर विजिलेंस क्लीयरेंस नहीं दी गई तो द्विवेदी की नियुक्ति कैसे की जा सकती है। कोर्ट ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि आपको बिना पूर्व मंजूरी के उनकी नियुक्ति नहीं करनी चाहिए थी।
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में शामिल होने से पहले द्विवेदी पंजाब एंड सिंध बैंक में महाप्रबंधक थे।
2020 में, सुप्रीम कोर्ट ने उस महिला का स्थानांतरण रद्द कर दिया था, जिसने द्विवेदी के खिलाफ उनकी शाखा में अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की रिपोर्ट और उनके खिलाफ अपनी शिकायतों को लेकर याचिका दायर की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने 2018 में उसका यौन उत्पीड़न किया था।
महिला ने अधिकारियों को कई पत्र लिखकर शराब ठेकेदारों के खातों के रखरखाव में कथित अनियमितताओं की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया था। उन्होंने द्विवेदी के खिलाफ भ्रष्टाचार के विशिष्ट आरोप भी लगाए थे।
सर्वोच्च न्यायालय ने महिला को एक वर्ष की अवधि के लिए स्केल IV अधिकारी के रूप में संबंधित शाखा कार्यालय में पुनः तैनात करने का निर्देश दिया था। साथ ही महिला को 50,000 रुपए का खर्च भी देने का आदेश दिया था।