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स्वामी प्रेमानंद महाराज का विचार: बच्चों पर माता-पिता के कर्मों का प्रभाव

कहा जाता है कि हर व्यक्ति अपने कर्मों का फल अवश्य पाता है, लेकिन क्या बच्चों को भी अपने माता-पिता के कर्मों का फल मिलता है? आइए, इस प्रश्न का सही जवाब जानें।

स्वामी प्रेमानंद महाराज के अनुसार, माता-पिता दुनिया में संतान को लाते हैं, उसका पालन-पोषण करते हैं और उसे जीवन जीने योग्य बनाते हैं। सनातन धर्म में माता-पिता को संतान का पहला गुरु माना जाता है। इसके साथ ही, यह भी कहा जाता है कि माता-पिता के कर्मों का फल उनकी संतान को भुगतना पड़ता है। इस विषय पर कई लोग भ्रमित रहते हैं कि क्या वास्तव में ऐसा होता है। इस सवाल का विस्तार से उत्तर वृंदावन के स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने दिया है। आइए जानें, स्वामी प्रेमानंद जी महाराज माता-पिता के कर्मों को लेकर क्या राय रखते हैं।

माता पिता के कर्मो का फल भोगती है संतान  |  kids bear karmafal of their parents

स्वामी प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, यह सच है कि माता-पिता के कर्मों का फल उनकी संतान को भुगतना पड़ता है। स्वामी प्रेमानंद जी ने बताया कि जैसे माता-पिता अपने बच्चों को जन्म देते हैं, उन्हें संस्कार और संपत्ति प्रदान करते हैं, वैसे ही वे अपने कर्मों का फल भी संतान को सौंपते हैं। माता-पिता के अच्छे कर्मों का फल संतान को अच्छे संस्कार के रूप में मिलता है, जबकि बुरे कर्मों का फल संतान को कष्ट और कठिनाइयों के रूप में भुगतना पड़ता है। स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने सुझाव दिया कि अगर माता-पिता अपने बच्चों का सुखी जीवन चाहते हैं, तो उन्हें अपने कर्म अच्छे और पवित्र रखने चाहिए। इससे न केवल उनका जीवन सुखी रहेगा, बल्कि उनकी संतान का भी कल्याण होगा।

कौन हैं  स्वामी प्रेमानंद जी महाराज  | who is swami premanand ji maharaj


स्वामी प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन के निवासी हैं, जबकि उनका जन्म कानपुर में हुआ था। हाल के दिनों में, स्वामी प्रेमानंद जी महाराज काशी में रह रहे हैं और वहां भगवान शिव की भक्ति में लीन हैं। वे नियमित रूप से सत्संग करते हैं, और उनके कई वीडियो सोशल मीडिया पर काफी देखे और सुने जाते हैं। स्वामी प्रेमानंद जी महाराज राधा रानी को अपना इष्ट मानते हैं, और उनके सोशल मीडिया पर ढेर सारे अनुयायी और फॉलोअर हैं जो उनके सत्संग को गहरी रुचि और श्रद्धा से सुनते हैं। स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने महज 13 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था, और उनके गुरु श्री गौरंगी शरण जी महाराज हैं। पांचवीं कक्षा से ही स्वामी प्रेमानंद जी महाराज का रुझान आध्यात्म की ओर बढ़ा और उन्होंने गीता का पाठ करना शुरू कर दिया था।

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